Big News : भट्ट ने संसद में जोशीमठ ओबीसी क्षेत्र को केंद्रीय आरक्षित सूची में शामिल करने का मुद्दा उठाया

  • जोशीमठ ओबीसी क्षेत्र को केंद्रीय आरक्षित सूची में शामिल करने की मांग की

उत्तराखंड सरोकार ब्यूरो 

देहरादून। राज्यसभा सांसद एवं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने जोशीमठ के ओबीसी क्षेत्र को आरक्षण की राष्ट्रीय अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा उच्च सदन में उठाया हैं।

राज्यसभा में प्रश्न काल के दौरान उन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए सीमांत जनपद चमोली में विकासखंड जोशीमठ के पेनखंड क्षेत्र को केंदीय ओबीसी अनुसूची में किया जाना आवश्यक बताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र 43 ग्राम पंचायतों 73 जातियों के 48 हजार 202 लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षेत्र एवं क्षेत्रवासियों के समग्र विकास को लेकर लंबे समय से ओबीसी आरक्षण दिए जाने की मांग रही है । हालांकि राज्य सरकार द्वारा 2016 में उन्हें ओबीसी कैटेगिरी में शामिल कर सरकारी सेवा में 14 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। लेकिन वहां के लोगों को समुचित लाभ हेतु उन्हें केंद्र की ओबीसी आरक्षण सूची में शामिल किए जाने की मांग लगातार जारी है।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि क्षेत्रवासी अपनों को केंद्रीय ओबीसी आरक्षण सूची में सम्मिलित करने हेतु अनेकों बार भारत सरकार को आवेदन कर चुके हैं, परंतु अभी तक इस दिशा में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया है जिससे पूरा क्षेत्र 27% केंद्रीय आरक्षण की सुविधा से वंचित है। लिहाजा इस लोक महत्व के महत्वपूर्ण विषय पर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने इस क्षेत्र को केंद्रीय अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग की है। साथ ही उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार तिब्बत सीमा क्षेत्र के अपनी दूसरी पंक्ति के सैनिकों की मांग को शीघ्र पूर्ण करेंगे ।

योग को केंद्रीय शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग को भी उठाया

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राज्य सभा सांसद महेन्द्र भट्ट ने योग को केंद्रीय शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग को उठाया। भट्ट राज्यसभा में योग शिक्षा को केन्द्रीय पाठ्यक्रम में शामिल करने के संदर्भ में विशेष उल्लेख करते हुए अपने संबोधन में केंद्र सरकार से अपेक्षा की है कि भारत की इस धरोहर को युवा पीढ़ी के हृदय में लाने के लिए केन्द्रीय शिक्षा पाठ्यक्रम में भी प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक योग शिक्षा की अनिवार्यता को सुनिश्चित करने के प्रयास हो, जिससे हम अपनी इस पुरातन शिक्षा से विश्व को भी लाभ पहुंचा सकें।

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